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दुनिया में शांति का संदेश !

 



आज के समय में, जब हम चारों ओर देखते हैं, तो हम युद्ध, संघर्ष, और असहमति के बीच में फंसे हुए पाते हैं। इन हालातों में, शांति का संदेश और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। अगर हम दुनिया को एक बड़े परिवार के रूप में देखें, तो यह समझना जरूरी है कि हर परिवार में मतभेद होते हैं, लेकिन यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि इन मतभेदों को कैसे सुलझाया जाए। 


भारत, जो कि प्राचीन सभ्यता और विविधता का अद्वितीय मिश्रण है, हमेशा से ही शांति, सह-अस्तित्व और सर्वजन हिताय के सिद्धांतों का पालन करता आया है। वास्तव में, भारत को अक्सर 'दुनिया का पिता' और 'दुनिया की माता' कहा जाता है। भारत की भूमि ने ऐसे महान आत्माओं को जन्म दिया है जिन्होंने मानवता को प्रेम, शांति, और सहिष्णुता का पाठ पढ़ाया। महात्मा गांधी, गौतम बुद्ध, स्वामी विवेकानंद जैसे कई महान नेता इस भूमि पर जन्मे, जिन्होंने केवल भारत को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को शांति और अहिंसा का संदेश दिया।


भारत की संस्कृति में वसुधैव कुटुम्बकम् का सिद्धांत निहित है, जिसका अर्थ है कि पूरी दुनिया एक परिवार है। यह विचार हमें सिखाता है कि चाहे हम कितने भी अलग हों, हमारे मूल में हम सभी एक ही हैं। आज की दुनिया में, जब हम विभाजन और दुश्मनी के बीच में घिरे हैं, यह विचार और भी प्रासंगिक हो जाता है।


लेकिन, जैसा कि हर परिवार में होता है, कुछ बच्चे अच्छे होते हैं, कुछ नालायक होते हैं, और कुछ चालाक होते हैं। चालाक बच्चे अक्सर अपने भाई-बहनों के बीच झगड़ा कराने में माहिर होते हैं। इसी तरह, दुनिया में भी कुछ तत्व ऐसे हैं जो संघर्ष और मतभेद को बढ़ावा देते हैं, क्योंकि उनकी सोच और स्वार्थी उद्देश्य उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित करते हैं। 


दुर्भाग्य से, आज की दुनिया भी इसी मानसिकता को अपना रही है। देश-देश के बीच, समुदायों के बीच, और यहां तक कि व्यक्तिगत स्तर पर भी, हम देखते हैं कि लोग शक्ति और अधिकार की खोज में अपने निकटतम लोगों को ही आहत कर रहे हैं। शक्ति का यह लालच इतना प्रबल हो गया है कि इसके लिए लोग अपने सगे भाइयों को भी मारने से पीछे नहीं हटते। यह स्थिति न केवल मानवता के लिए, बल्कि हमारे वैश्विक समाज के लिए भी अत्यंत घातक है।


मैं इस संदेश के माध्यम से पूरी दुनिया से यह पूछना चाहता हूँ: ऐसी शक्ति का क्या उपयोग है जब तुम्हारे अपने ही उसे देखने के लिए नहीं बचे? क्या यह शक्ति तब भी इतनी महत्वपूर्ण होगी जब तुम्हारे अपने प्रियजन ही तुम्हारे साथ न हों? 


शक्ति का सही अर्थ केवल बाहुबल में नहीं है, बल्कि यह उस शक्ति में भी है जो हमें अपने मतभेदों को भूलकर एक दूसरे के साथ मिलकर रहने की क्षमता देती है। असली शक्ति वह है जो हमें अपने गुस्से और नफरत को पीछे छोड़कर शांति और सहिष्णुता की ओर बढ़ने की प्रेरणा देती है। 


यह समझना आवश्यक है कि दुनिया में शांति केवल तब स्थापित हो सकती है जब हम एक दूसरे को समझें, उनके विचारों का सम्मान करें, और एक दूसरे के साथ सह-अस्तित्व की भावना विकसित करें। इसके लिए हमें न केवल अपने भीतर के डर और नफरत को खत्म करना होगा, बल्कि दूसरों को भी समझने और उनकी भावनाओं का सम्मान करने की आदत डालनी होगी। 


शांति की राह आसान नहीं है, लेकिन यह असंभव भी नहीं है। हमें इस दिशा में छोटे-छोटे कदम उठाने की आवश्यकता है। हमें अपने परिवार, दोस्तों, और समुदायों में शांति और सह-अस्तित्व की भावना का प्रचार करना होगा। हमें यह समझना होगा कि हमारे छोटे-छोटे प्रयास भी एक बड़ा अंतर ला सकते हैं।


भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा में कहा गया है कि "सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।" इसका अर्थ है कि सभी सुखी हों, सभी स्वस्थ हों। यह मंत्र हमें यह सिखाता है कि हमारी खुशी और हमारी समृद्धि दूसरों की खुशी और समृद्धि से जुड़ी हुई है। 


इसलिए, आइए हम सब मिलकर एक ऐसी दुनिया का निर्माण करें जहां शांति, प्रेम, और सहिष्णुता का वास हो। जहां हर व्यक्ति एक दूसरे के विचारों और भावनाओं का सम्मान करे। जहां मतभेद और असहमति होने पर भी हम शांति और संवाद के माध्यम से उन्हें सुलझाने का प्रयास करें। 


दुनिया को एक बेहतर स्थान बनाने के लिए हमें मिलकर प्रयास करना होगा। यह हमारा कर्तव्य है, और हमें इस दिशा में मिलकर काम करना होगा। 


शांति और प्रेम के साथ,

रामगजराजरमंनबाबा



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