भारत एक प्राचीन सभ्यता है जो अपनी विविधता और सांस्कृतिक धरोहर के लिए जानी जाती है। लेकिन इसी विविधता में एक खतरनाक सच्चाई छिपी है: कैसे भारतीयों को गुलाम बनाया गया, कैसे वो खुद को धोखा देते हैं, और कैसे जातिवाद ने उन्हें जानवरों की तरह जीने पर मजबूर कर दिया है।
गुलामी का मनोविज्ञान: आत्म-धोखे का जाल
भारतीय समाज में जातिवाद का जहर बहुत गहरा है। लोग जातिवाद के लिए मरने-मारने को तैयार हैं, लेकिन एक होने को नहीं। यही मानसिकता उन्हें सदियों से गुलाम बनाए रखी है।
जब अंग्रेजों ने भारत पर शासन किया, उन्होंने इस विभाजन का पूरा फायदा उठाया। उन्होंने ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपनाई, और भारतीय समाज में पहले से मौजूद जातिवाद को और बढ़ावा दिया।
आजादी के इतने साल बाद भी, हम इस गुलामी से मुक्त नहीं हो पाए हैं। हमारे नेता और राजनेता इस विभाजन का फायदा उठाकर अपनी रोटियां सेकते रहते हैं।
सनातनियों की मानसिकता: जन्मजात गुलामी
सनातनी समाज में धार्मिक और जातीय भेदभाव बहुत गहरा है। यह भेदभाव सिर्फ बाहरी लोगों के लिए नहीं, बल्कि समाज के अंदर भी है। उच्च जाति और निम्न जाति के बीच की खाई इतनी गहरी है कि इसे पाटना नामुमकिन सा लगता है।
सनातनियों को कोई गुलाम नहीं बना सकता, क्योंकि वे जन्मजात गुलाम हैं। उनकी मानसिकता ही उन्हें गुलाम बनाए रखती है। वे अपनी धार्मिक और जातीय पहचान के नाम पर एक-दूसरे से लड़ते रहते हैं, और इस लड़ाई में वे अपने असली शत्रु को भूल जाते हैं।
निष्कर्ष: एकता का अभाव
भारतीय समाज में एकता का अभाव है। यह अभाव ही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है, और इसी कमजोरी का फायदा हमारे शत्रु उठाते रहे हैं।
सनातनी समाज में धार्मिक और जातीय भेदभाव बहुत गहरा है, और यह भेदभाव उन्हें एकजुट होने से रोकता है।
हमारे समाज को अगर सच में बदलना है, तो हमें इस भेदभाव को खत्म करना होगा। हमें अपनी धार्मिक और जातीय पहचान से ऊपर उठकर एकता की ओर बढ़ना होगा। तभी हम एक सशक्त और स्वतंत्र समाज का निर्माण कर पाएंगे।
उपसंहार: परिवर्तन की दिशा
भारत एक प्राचीन और महान सभ्यता है, लेकिन हमें अपनी कमजोरियों को पहचानकर उनसे उबरने की आवश्यकता है। जातिवाद और धार्मिक भेदभाव ने हमें सदियों से बांध रखा है, और यह हमें आगे बढ़ने से रोकता है।
हमारे समाज को अगर सच में बदलना है, तो हमें इस भेदभाव को खत्म करना होगा। हमें अपनी धार्मिक और जातीय पहचान से ऊपर उठकर एकता की ओर बढ़ना होगा।
सिर्फ तभी हम एक सशक्त और स्वतंत्र समाज का निर्माण कर पाएंगे, जो अपनी प्राचीन धरोहर को सम्मानित करते हुए भविष्य की ओर अग्रसर हो सके।
हमें इस बात को समझना होगा कि सनातनियों को कोई गुलाम नहीं बना सकता, क्योंकि वे जन्मजात गुलाम नहीं हैं। हमें अपनी मानसिकता को बदलना होगा, और एक सशक्त और स्वतंत्र समाज का निर्माण करना होगा।
अंतिम विचार: एकता और स्वतंत्रता का संकल्प
भारत एक महान देश है, और हमें इसकी महानता को बनाए रखने के लिए एकजुट होना होगा। जातिवाद और धार्मिक भेदभाव को खत्म करना होगा, और एक सशक्त और स्वतंत्र समाज का निर्माण करना होगा।
यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर और मजबूत भारत का निर्माण करें।
एकता में ही हमारी शक्ति है, और इस शक्ति को पहचानकर ही हम अपने समाज को सशक्त और स्वतंत्र बना सकते हैं।