भारत का इतिहास:- भारत की शिक्षा प्रणाली ने सदियों से विविधता और गहनता की छटा बिखेरी है। गुरुकुल प्रणाली, जिसमें विद्यार्थी अपने गुरु के आश्रम में रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे, भारतीय समाज की रीढ़ थी। यह प्रणाली केवल अकादमिक ज्ञान ही नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू का समावेश करती थी। लेकिन अंग्रेजों के शासनकाल में इस प्राचीन प्रणाली को समाप्त कर दिया गया और एक नई शिक्षा प्रणाली को लागू किया गया। इसके पीछे कई गहरे उद्देश्य थे, जो हर भारतीय को जानना चाहिए।
गुरुकुल प्रणाली: भारतीय संस्कृति की धरोहर
गुरुकुल प्रणाली का आरंभ प्राचीन काल में हुआ था। इसमें विद्यार्थियों को गुरुओं के आश्रम में रहकर शिक्षा प्राप्त करनी होती थी। यह शिक्षा प्रणाली न केवल शैक्षणिक ज्ञान पर आधारित थी, बल्कि जीवन मूल्यों, संस्कारों, और विभिन्न कौशलों की शिक्षा भी देती थी। विद्यार्थी कृषि, व्यापार, कला, संगीत, युद्ध कौशल, और धार्मिक शिक्षा प्राप्त करते थे। यह प्रणाली भारतीय समाज को एकजुट करने और समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी।
अंग्रेजों का आगमन और शिक्षा प्रणाली में बदलाव
18वीं शताब्दी में अंग्रेजों का भारत आगमन हुआ और उन्होंने धीरे-धीरे भारत पर अपना शासन स्थापित किया। अंग्रेजों ने महसूस किया कि भारतीय समाज को नियंत्रित करने और अपनी नीतियों को लागू करने के लिए एक नई शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता है। अंग्रेजों के अनुसार, गुरुकुल प्रणाली उनके उद्देश्यों को पूरा नहीं कर सकती थी।
मैकाले का मिनट
1835 में लॉर्ड मैकाले ने "मिनट ऑन इंडियन एजुकेशन" प्रस्तुत किया। इसमें उन्होंने गुरुकुल प्रणाली की आलोचना की और अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने की वकालत की। उनका उद्देश्य एक ऐसा वर्ग तैयार करना था जो अंग्रेजी में सोच सके, अंग्रेजी में बात कर सके और अंग्रेजी में कार्य कर सके। इस वर्ग का उपयोग ब्रिटिश शासन की सहायता के लिए किया जाना था।
नई शिक्षा प्रणाली के मानदंड
अंग्रेजों द्वारा लागू की गई शिक्षा प्रणाली में मुख्य रूप से निम्नलिखित मानदंड थे:
1. अंग्रेजी भाषा का प्रचलन: अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाया गया। इसका उद्देश्य भारतीयों को अंग्रेजी भाषा में दक्ष बनाना था ताकि वे ब्रिटिश प्रशासन में काम कर सकें।
2. अकादमिक ज्ञान पर जोर: नई शिक्षा प्रणाली में केवल अकादमिक ज्ञान को महत्व दिया गया। व्यावहारिक शिक्षा और जीवन कौशल की उपेक्षा की गई।
3. पाठशालाओं का निर्माण: अंग्रेजों ने बड़े पैमाने पर स्कूल और कॉलेज स्थापित किए। ये संस्थान अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली के मानदंडों के अनुसार संचालित होते थे।
4. रोजगार की मानसिकता: नई शिक्षा प्रणाली ने भारतीयों में नौकरी पाने की मानसिकता को बढ़ावा दिया। इसका उद्देश्य एक ऐसा वर्ग तैयार करना था जो ब्रिटिश शासन के लिए क्लर्क, अधिकारी और कर्मचारी बन सके।
गुरुकुल प्रणाली का अंत और उसके परिणाम
गुरुकुल प्रणाली को धीरे-धीरे समाप्त कर दिया गया। इसके परिणामस्वरूप भारतीय समाज में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए:
व्यापार और संयुक्त परिवार प्रणाली का ह्रास
गुरुकुल प्रणाली में विद्यार्थियों को व्यापार और संयुक्त परिवार में रहने का ज्ञान दिया जाता था। लेकिन नई शिक्षा प्रणाली में इस पर ध्यान नहीं दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय समाज में व्यापार की परंपरा और संयुक्त परिवार प्रणाली का ह्रास होने लगा। आज के समय में बहुत कम परिवार संयुक्त परिवारों में रहते हैं। इससे पारिवारिक एकता और सहयोग की भावना कमजोर हो गई।
परंपराओं का ह्रास
गुरुकुल प्रणाली भारतीय परंपराओं और संस्कृति का संरक्षण और संवर्धन करती थी। लेकिन नई शिक्षा प्रणाली में इसका अभाव था। इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय समाज अपनी परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर से दूर होने लगा।
नौकरी की मानसिकता
नई शिक्षा प्रणाली ने भारतीयों में नौकरी पाने की मानसिकता को प्रबल किया। इसका उद्देश्य भारतीयों को नौकरी में व्यस्त रखना था ताकि वे स्वतंत्रता संग्राम और अन्य सामाजिक आंदोलनों में भाग न ले सकें। आज भी भारतीय समाज में यह मानसिकता व्याप्त है और अधिकांश लोग सरकारी या निजी क्षेत्र में नौकरी पाने के लिए ही शिक्षा प्राप्त करते हैं।
शिक्षा का व्यवसायीकरण
गुरुकुल प्रणाली में शिक्षा एक सामाजिक और धार्मिक दायित्व माना जाता था। लेकिन नई शिक्षा प्रणाली में शिक्षा को व्यवसाय का रूप दिया गया। इससे शिक्षा का व्यवसायीकरण हो गया और शिक्षा प्राप्त करना महंगा हो गया।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य
आज के समय में, जब हम अपने इतिहास पर दृष्टि डालते हैं, तो यह समझ में आता है कि अंग्रेजों द्वारा लागू की गई शिक्षा प्रणाली ने भारतीय समाज को गहराई से प्रभावित किया है। हालांकि, आधुनिक समय में शिक्षा प्रणाली में कई सुधार हुए हैं, लेकिन फिर भी हमें अपने प्राचीन गुरुकुल प्रणाली के मूल्यों को समझने और उन्हें पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता है। इससे न केवल हमारी परंपराओं का संरक्षण होगा, बल्कि हमारे समाज में एकता और सहयोग की भावना भी मजबूत होगी।
हर भारतीय को यह जानना चाहिए कि अंग्रेजों ने शिक्षा प्रणाली में जो परिवर्तन किए, उनका उद्देश्य केवल भारतीयों को शिक्षित करना नहीं था, बल्कि उन्हें अपने उद्देश्यों के लिए उपयोग करना था। हमें अपनी प्राचीन शिक्षा प्रणाली और परंपराओं को समझकर उनके संरक्षण और संवर्धन की दिशा में कार्य करना चाहिए। इससे हमारा समाज और अधिक मजबूत और समृद्ध होगा।