भारत की स्वतंत्रता के बाद से हमारे देश में लोकतंत्र का विकास हुआ, लेकिन इसके साथ ही राजनीतिक दलों का जनता के प्रति दृष्टिकोण भी बदलता रहा। यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत में अधिकांश राजनीतिक दलों ने देशवासियों को केवल अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जिस उद्देश्य से देश के नेता और जनता एकजुट हुए थे, वह आज कहीं खो गया है। वर्तमान समय में जाति, धर्म, और वर्ग के नाम पर राजनीति हो रही है, और जनता को गुमराह किया जा रहा है।
जाति और धर्म की राजनीति
स्वतंत्रता के बाद भारत में जाति और धर्म पर आधारित राजनीति का उदय हुआ। पहले यह मुद्दे केवल समाज के कुछ वर्गों में ही सीमित थे, लेकिन धीरे-धीरे राजनीतिक दलों ने इनका इस्तेमाल वोट बैंक बनाने के लिए करना शुरू कर दिया। जाति और धर्म के नाम पर जनता को विभाजित किया गया और यह सुनिश्चित किया गया कि वे एकजुट न हों। विभिन्न राजनीतिक दलों ने विभिन्न जातियों और धार्मिक समुदायों को अपनी प्राथमिकता बनाकर उनकी भावनाओं का शोषण किया।
यह विभाजन केवल चुनाव के समय तक सीमित नहीं रहता। चुनाव के बाद भी जनता के बीच दरारें बनाए रखी जाती हैं ताकि वे एकजुट न हों और अपने हक के लिए आवाज न उठा सकें। जब एक समाज में जाति और धर्म के आधार पर विभाजन हो जाता है, तो राजनीतिक दलों के लिए अपनी नीतियों को लागू करना आसान हो जाता है। वे जनता को ऐसे मुद्दों में उलझाकर रखते हैं जो उनकी मूलभूत समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए होते हैं।
शिक्षा का महत्त्व और उसकी स्थिति
किसी भी देश की प्रगति का आधार उसकी शिक्षा व्यवस्था होती है। एक शिक्षित समाज ही देश को आगे ले जा सकता है, लेकिन दुर्भाग्यवश, भारत में आज भी शिक्षा के क्षेत्र में गंभीर समस्याएं हैं। शिक्षा का महत्त्व हमारे संविधान में भी माना गया है, लेकिन शिक्षा की मौजूदा स्थिति इसे एक दूर का सपना बनाती है।
सरकारी स्कूलों की स्थिति सबके सामने है। बुनियादी सुविधाओं की कमी, शिक्षकों की अनुपस्थिति, और पाठ्यक्रम की गुणवत्ता में कमी, इन सभी समस्याओं ने सरकारी शिक्षा व्यवस्था को कमजोर बना दिया है। इसके परिणामस्वरूप, जो लोग आर्थिक रूप से सक्षम हैं, वे अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजते हैं, जबकि गरीब और कमजोर वर्ग के बच्चे सरकारी स्कूलों पर निर्भर रहते हैं। इससे समाज में एक नया विभाजन पैदा हो रहा है—शिक्षा के आधार पर।
निजी स्कूलों की फीस इतनी अधिक है कि उसे हर कोई वहन नहीं कर सकता। शिक्षा, जो कि सभी का अधिकार है, अब एक व्यापार बन गया है। उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा का लाभ केवल वही उठा सकते हैं जिनके पास आर्थिक संसाधन हैं। इससे हमारे देश के युवाओं का एक बड़ा हिस्सा शिक्षा से वंचित रह जाता है, जो देश की प्रगति में एक बड़ी बाधा है।
राजनीतिक दलों की भूमिका
यह चिंताजनक है कि देश की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के बजाय, राजनीतिक दल जाति, धर्म, और वर्ग के मुद्दों पर अधिक ध्यान देते हैं। शिक्षा को सुधारने के लिए नीतियों का निर्माण करना और उन्हें लागू करना, जो कि राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी है, उसे अक्सर नजरअंदाज किया जाता है। इसके बजाय, शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के नाम पर केवल चुनावी वादे किए जाते हैं, जो चुनाव के बाद भूले जा जाते हैं।
इसके अलावा, राजनीतिक दलों के लिए शिक्षा के क्षेत्र में सुधार करना भी आसान नहीं होता, क्योंकि इससे जनता अधिक शिक्षित और जागरूक हो जाएगी। एक शिक्षित जनता अपने अधिकारों के प्रति सचेत होती है और उसे धोखा देना कठिन होता है। इसलिए, राजनीतिक दलों के लिए यह अधिक फायदेमंद होता है कि वे जनता को जाति और धर्म के नाम पर उलझाए रखें और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों से उनका ध्यान भटकाए रखें।
भविष्य की चुनौतियाँ और समाधान
यदि हम अब भी नहीं चेते, तो आने वाली पीढ़ी को भी वही समस्याएं झेलनी होंगी जो आज हम झेल रहे हैं। हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या हम चाहते हैं कि हमारी अगली पीढ़ी भी शिक्षित न हो और केवल सरकारी नौकरी के लिए संघर्ष करे? क्या हम चाहते हैं कि वे भी जाति और धर्म के नाम पर विभाजित रहें और अपने हक के लिए आवाज न उठा सकें?
हमें यह समझना होगा कि किसी भी समाज की प्रगति उसके युवाओं की शिक्षा पर निर्भर करती है। यदि हम अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दे सकते, तो हम अपने देश को कैसे आगे बढ़ा सकते हैं? इसके लिए जरूरी है कि हम अपनी आवाज उठाएं और शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की मांग करें।
सरकार को चाहिए कि वह शिक्षा के क्षेत्र में निवेश करे और सरकारी स्कूलों की स्थिति में सुधार करे। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हर बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले, चाहे उसकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो। इसके लिए नीतियों का निर्माण और उनका सही तरीके से क्रियान्वयन आवश्यक है।
जनता की भूमिका
राजनीतिक दल केवल वही करेंगे जो उनके फायदे में होगा, लेकिन जनता के पास ताकत है कि वे उन्हें उनके कर्तव्यों का एहसास कराएं। हमें जाति और धर्म के मुद्दों में उलझने के बजाय, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए।
आजकल सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों के जरिए जनता अपनी बात रख सकती है। हमें इन माध्यमों का सही उपयोग करना चाहिए और सरकार और राजनीतिक दलों पर दबाव बनाना चाहिए कि वे शिक्षा के क्षेत्र में सुधार करें।
यह सही समय है कि हम जागरूक हों और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए बेहतर भविष्य का निर्माण करें। यदि हम आज नहीं चेते, तो कल बहुत देर हो जाएगी। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे बच्चों को वह शिक्षा मिले जिसके वे हकदार हैं, ताकि वे न केवल अपने लिए, बल्कि देश के लिए भी कुछ कर सकें।
निष्कर्ष
भारत की आजादी के बाद से अब तक राजनीतिक दलों ने जनता को केवल अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया है। जाति, धर्म, और वर्ग के नाम पर राजनीति ने देश को पीछे धकेला है। लेकिन अगर हमें वाकई में देश की प्रगति देखनी है, तो हमें शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाना होगा। शिक्षा ही वह माध्यम है जिससे देश की असली उन्नति हो सकती है। इसलिए, हमें अपनी आवाज उठानी होगी और शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए सरकार पर दबाव डालना होगा। यही हमारे देश के भविष्य के लिए आवश्यक है।