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भारत में सरकारी स्कूलों की बदहाल स्थिति: शिक्षा व्यवस्था की असल सच्चाई और समाधान | 2025 में शिक्षा सुधार की जरूरत

भारत में सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की बदहाली: कारण और समाधान | Nishpaksh News

भारत में सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की बदहाली: कारण और समाधान

नई दिल्ली, जुलाई 2025: भारत का भविष्य उसकी शिक्षा व्यवस्था पर निर्भर करता है, लेकिन जब हम देश के सरकारी स्कूलों की ओर देखते हैं, तो वहां की हालत चिंताजनक है। लाखों बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ाई करते हैं, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता लगातार गिरती जा रही है। यह रिपोर्ट विस्तार से बताएगी कि भारत में सरकारी स्कूलों में सही पढ़ाई क्यों नहीं होती और इसके क्या-क्या गहरे कारण हैं।

1. शिक्षक की कमी और अनियमित उपस्थिति

देश के ग्रामीण इलाकों में हजारों स्कूल ऐसे हैं जहाँ एक या दो शिक्षक पूरे स्कूल को संभालते हैं। कभी-कभी शिक्षक स्कूल आते ही नहीं या फिर देर से आते हैं। शिक्षकों की गैर-शैक्षणिक ड्यूटी, जैसे चुनाव कार्य, जनगणना, या राशन कार्ड बनाने जैसे कामों में उन्हें लगा दिया जाता है, जिससे पढ़ाई प्रभावित होती है।

2. आधारभूत सुविधाओं की कमी

सरकारी स्कूलों में शौचालय, पीने का पानी, बिजली, फर्नीचर और पुस्तकालय जैसी मूलभूत सुविधाएं या तो नहीं होतीं या बेहद खराब स्थिति में होती हैं। कई बार बच्चे ज़मीन पर बैठकर पढ़ने को मजबूर होते हैं। ऐसे माहौल में शिक्षा एक बोझ बन जाती है न कि प्रेरणा।

3. सरकारी उदासीनता और भ्रष्टाचार

सरकार की योजनाएं भले ही कागज पर शानदार दिखें, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है। कई बार फंड जारी नहीं होता, और जब होता है तो उसका अधिकांश हिस्सा बिचौलियों की जेब में चला जाता है। मिड-डे मील योजना में भी घोटाले की खबरें आम हैं।

4. पाठ्यक्रम और पढ़ाई की पद्धति में कमजोरी

सरकारी स्कूलों में पढ़ाई अधिकतर रट्टा प्रणाली पर आधारित होती है। क्रिटिकल थिंकिंग, व्यावहारिक ज्ञान और भाषाई दक्षता पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है। इससे बच्चों की समझ कमजोर रह जाती है और वे प्रतियोगी परीक्षाओं में पिछड़ जाते हैं।

5. डिजिटल डिवाइड और तकनीकी अभाव

जहाँ एक ओर निजी स्कूलों में स्मार्ट क्लास, ऑनलाइन शिक्षण और लैपटॉप उपलब्ध हैं, वहीं सरकारी स्कूलों में तकनीक आज भी सपना है। COVID-19 महामारी के समय यह अंतर और भी साफ हो गया। ऑनलाइन क्लास की सुविधा ना होने के कारण लाखों सरकारी स्कूलों के बच्चे पढ़ाई से वंचित रह गए।

6. माता-पिता की जागरूकता की कमी

ग्रामीण और निर्धन परिवारों के अभिभावक अक्सर पढ़ाई को प्राथमिकता नहीं देते। उनके लिए बच्चों को स्कूल भेजना केवल मिड-डे मील पाने का माध्यम है। शिक्षा का असली उद्देश्य उन तक नहीं पहुँच पाया है।

7. जवाबदेही और निगरानी की कमी

सरकारी स्कूलों में निरीक्षण का कोई पुख्ता तंत्र नहीं है। कोई भी यह जांचने नहीं आता कि पढ़ाई हो भी रही है या नहीं। नतीजा यह होता है कि स्कूल औपचारिक रूप से चल रहे होते हैं, लेकिन शिक्षा का स्तर रसातल में होता है।

समाधान क्या हैं?

  • शिक्षकों की नियमित भर्ती: हर स्कूल में न्यूनतम आवश्यक शिक्षकों की नियुक्ति होनी चाहिए।
  • फिजिकल और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार: स्मार्ट क्लास, इंटरनेट, पुस्तकालय, और लैब्स की सुविधा सुनिश्चित की जाए।
  • मूल्यांकन और जवाबदेही: शिक्षकों की परफॉर्मेंस पर नियमित निगरानी हो और उन्हें पुरस्कार/दंड मिले।
  • स्थानीय भागीदारी: पंचायत, ग्राम सभा और अभिभावक समिति को स्कूल व्यवस्था में शामिल किया जाए।
  • नीति सुधार: शिक्षा बजट में वृद्धि और भ्रष्टाचार मुक्त वितरण प्रणाली लागू की जाए।

निष्कर्ष

भारत में सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था एक गंभीर संकट से गुजर रही है। यदि देश को विकासशील से विकसित राष्ट्र बनना है तो सबसे पहले शिक्षा को प्राथमिकता देनी होगी। सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता सुधारने के लिए सरकार, शिक्षक, समाज और अभिभावकों को एक साथ मिलकर काम करना होगा। तभी हम एक सशक्त, शिक्षित और आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार कर पाएंगे।

Presented by: Nishpaksh News | लेखक: राम कुमार

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