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स्कूल की नीतियों पर अब अभिभावकों की भी होगी नजर: पेरेंट्स कमेटी से होगी शिक्षा नीति पारित ?

स्कूल नीति में पैरेंट कमेटी की भागीदारी अनिवार्य हो

स्कूल नीति में पैरेंट कमेटी की भागीदारी अनिवार्य हो

नई दिल्ली: आज के समय में शिक्षा एक आवश्यक और मूलभूत अधिकार है, लेकिन जब यह शिक्षा स्कूलों में अनियमित नीतियों और मनमानी प्रशासनिक निर्णयों की भेंट चढ़ने लगती है, तो जरूरी हो जाता है कि अभिभावक आगे आकर अपनी भूमिका निभाएं। यही कारण है कि आज समाज में यह मांग तेज हो गई है कि स्कूलों में किसी भी नीति को लागू करने से पहले पैरेंट कमेटी की सहमति अनिवार्य होनी चाहिए।

अभिभावकों की भागीदारी क्यों है आवश्यक?

अभिभावक ही वो प्राथमिक कड़ी हैं जो बच्चों के हितों को सही मायनों में समझते हैं। जब स्कूल में कोई नई फीस संरचना, ड्रेस कोड, पाठ्यक्रम, स्कूल समय या अन्य प्रशासनिक बदलाव लागू किए जाते हैं, तब अभिभावकों की राय न लेना न केवल अलोकतांत्रिक है, बल्कि बच्चों के हितों के खिलाफ भी हो सकता है।

स्कूल की मनमानी पर कैसे लगेगा रोक?

वर्तमान समय में अनेक निजी और सरकारी स्कूलों पर यह आरोप लगते रहे हैं कि वे बिना अभिभावकों की जानकारी के अपनी मनमानी नीतियाँ लागू कर देते हैं — चाहे वह किताबों की बिक्री हो, नई यूनिफॉर्म का ठेका हो या सालाना शुल्क में वृद्धि। यदि स्कूल में एक अभिभावक समिति (Parent Monitoring Committee) बनाई जाए, जो हर फैसले पर नजर रखे और शिक्षा विभाग के साथ समन्वय में काम करे, तो यह मनमानी रोकी जा सकती है।

तीन स्तरीय मंजूरी प्रणाली होनी चाहिए

यह प्रस्ताव सामने आ रहा है कि स्कूल की किसी भी नई नीति को तभी मंजूरी दी जाए जब वह तीन स्तरों से होकर गुज़रे:

  1. स्कूल प्रशासन द्वारा प्रस्तावित नीति
  2. अभिभावक समिति द्वारा समीक्षा और सहमति
  3. शिक्षा विभाग द्वारा अंतिम स्वीकृति

इस तरह की व्यवस्था शिक्षा प्रणाली में पारदर्शिता और सहभागिता दोनों को बढ़ावा देगी।

अंतरराष्ट्रीय उदाहरण

कई विकसित देशों में पैरेंट-कम्युनिटी बोर्ड, स्कूल डिसिजन बोर्ड और स्थानीय शिक्षा समितियाँ बच्चों की शिक्षा, पाठ्यक्रम और संचालन में सक्रिय भूमिका निभाती हैं। भारत में भी यह मॉडल अपनाया जा सकता है ताकि सरकारी और निजी दोनों ही क्षेत्रों में जवाबदेही बढ़े।

पैरेंट्स की क्या भूमिका होगी?

इस कमेटी में शामिल अभिभावकों को स्कूल के सभी फैसलों, बजट, अनुशासन, टीचर रिव्यू, एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी आदि में भागीदारी मिलेगी। साथ ही, वे किसी भी प्रकार की शिकायत या सुझाव को सीधे शिक्षा विभाग तक पहुंचाने के लिए अधिकृत होंगे।

निष्कर्ष

अगर भारत को एक समावेशी और जवाबदेह शिक्षा प्रणाली बनानी है, तो स्कूलों की नीतियों में सिर्फ शिक्षकों और प्रशासन की ही नहीं, बल्कि उन माता-पिता की भी सहभागिता जरूरी है, जिनके भरोसे पर ये स्कूल चलते हैं।

इसलिए यह आवश्यक हो गया है कि शिक्षा नीति का विकेन्द्रीकरण हो और पेरेंट कमेटी को संवैधानिक दर्जा देकर उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जाए।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक नीतियाँ केवल एकतरफा बनाई जाती रहेंगी, तब तक ज़मीनी स्तर पर बदलाव संभव नहीं है। अभिभावक समिति का गठन एक व्यवहारिक और सामाजिक ज़रूरत बन गया है।

आप क्या सोचते हैं?

क्या आपके स्कूल में भी कोई पैरेंट कमेटी है? क्या आपकी राय को स्कूल गंभीरता से लेता है? नीचे कमेंट में अपनी राय ज़रूर बताएं।


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