नेपाल: Gen-Z विरोध और राजनीतिक हलचल — पूरी रिपोर्ट
कुछ दिनों में नेपाल में सोशल-मीडिया बैन के विरोध से शुरू हुआ आंदोलन बड़े पैमाने पर भड़क उठा। युवा-नेतृत्व वाले प्रदर्शन ने सरकार पर दबाव बढ़ाया, हिंसा फैली और राजनीतिक नेतृत्व में बड़े बदलाव हुए। नीचे घटना की पूरी जानकारी, टाइमलाइन और अहम बिंदु दिये जा रहे हैं — साथ ही संबंधित वीडियो भी embed किया गया है।
वीडियो: घटना की हाइलाइट
पूरा विवरण (Summary in Hindi)
8 सितंबर को नेपाल सरकार ने कई बड़े सोशल-मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अस्थायी पाबंदी लगा दी — सरकार का कहना था कि ये प्लेटफॉर्म नियमों के अनुसार पंजीकरण नहीं कर रहे और गलत जानकारी फैलने का खतरा है। इस निर्णय ने युवा-आवाज़ को भड़काया और खासकर Gen-Z वर्ग ने सड़कों पर उतर कर विरोध शुरू किया।
विरोध शुरू में शांतिपूर्ण था, लेकिन जल्दी ही टकराव और हिंसा में बदल गया। पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए आंसू गैस, जलकनन और रबर की गोलियों का इस्तेमाल किया; कुछ स्थानों पर ज़िंदा गोलियों के प्रयोग की भी रिपोर्टें आईं। अस्पतालों में भारी संख्या में घायल पहुंचे और स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार दर्जनों की मौतें हुईं।
टाइमलाइन — प्रमुख घटनाएँ
8 सितंबर: सोशल-मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर पाबंदी, युवाओं का भोज चलना और प्रारंभिक सड़कीय प्रदर्शन।
9 सितंबर (सुबह): प्रदर्शन तेज़ हुआ; कुछ प्रदर्शनकारियों ने सरकारी भवनों के पास हिंसा और आग लगाने की घटनाएँ कीं।
9 सितंबर (दोपहर/शाम): बढ़ते दबाव के कारण प्रधानमंत्री और कुछ मंत्रियों ने इस्तीफ़ा दिया; स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सेना की तैनाती शुरू हुई।
10 सितंबर: कर्फ्यू लागू, सेना सड़क पर गश्त कर रही है; राजनीतिक संक्रमण और मध्यस्थता की प्रक्रिया चल रही है।
क्यों इतना बड़ा आंदोलन?
सोशल-मीडिया बैन केवल उत्प्रेरक था — असल कारणों में युवा बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और पारिवारिक राजनीति (nepotism) से नाराज़गी शामिल है। Gen-Z ने डिजिटल प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर तेज़ी से संगठन बनाया और एक बड़े जन-आंदोलन का रूप ले लिया।
मानविक और राजनीतिक असर
- कई लोग घायल और दर्जनों की मौतें; अस्पतालों पर दबाव।
- सरकारी संपत्तियों को क्षति; कुछ सरकारी कार्यालयों के पास आग लगने की रिपोर्टें।
- प्रधानमंत्री के इस्तीफ़े और अस्थायी राजनीतिक अस्थिरता।
- सेना की तैनाती और कर्फ्यू के कारण नागरिक जीवन प्रभावित।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
पड़ोसी देशों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने संयम की अपील की; कई देशों ने अपने नागरिकों को सचेत रहने की सलाह दी। क्षेत्रीय स्थिरता को लेकर काफ़ी चिंता व्यक्त की गई है।
आगे क्या हो सकता है?
भविष्य के विकल्पों में बातचीत के ज़रिये संक्रमण, अंतरिम सरकार या नए चुनाव शामिल हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर युवाओं की माँगों को समुचित ढंग से सुना और सुधारा गया, तो यह दीर्घकालिक सुधार में बदल सकता है—अन्यथा नई राजनीतिक अस्थिरता का संकट बना रहेगा।
